“History has been created today”
यह शब्द थे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के, तारीख थी सितम्बर २४ , २०१४ और अवसर था भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो द्वारा प्रक्षेपित अंतरिक्ष यान को मंगल ग्रह की कक्षा में प्रस्थापित करना.
भारत का मंगलयान मंगल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रस्थापित हो चूका था , ऐसा करनेवाला भारत दुनिया का चौथा , एशिया का पहला और पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक यान भेजनेवाला पहला देश बन चूका था . जिस देश में अबतक लोगोके कुंडली में मंगल रहता था. आज उसी देश ने अपना यान मंगल पर भेज दिया था. लेकिन बात इतनी आसान नहीं थी इसके पीछे थी कड़ी मेहनत, कडा संघर्ष और साधनों की कमी होनेके बावजूद भी राष्ट्र के लिए कुछ कर दिखाने का हौसला.
हेल्लो सलाम नमस्ते, स्वागत है आपका SPACE MAGICA पर और आज हम जानेंगे इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन अर्थात इसरो के इतिहास के बारे में .
भारतीय अंतरिक्ष इतिहास के पन्नको को अगर हम पलटे तो हमारी मुलाकात मशहूर वैज्ञानिक डॉ . विक्रम साराभाई से होगी | जिन्हें भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा गया है। 19५7 में स्पूतनिक के प्रक्षेपण के बाद, उन्होंने कृत्रिम उपग्रहों की उपयोगिता को भांपा। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू, जिन्होंने भारत के भविष्य में वैज्ञानिक विकास को अहम् भाग माना, 1961 में अंतरिक्ष अनुसंधान को परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में रखा। परमाणु उर्जा विभाग के निदेशक होमी भाभा, जो कि भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं, 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (इनकोस्पार) का गठन किया, जिसमें डॉ॰ साराभाई को सभापति के रूप में नियुक्त किया. आसान भाषा में कहा जाये तो इन्स्कोपार इसरो का पुराना नाम है.
उसी बिच थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लौन्चिंग स्टेशन भारत का पहला रॉकेट लौन्चिंग स्टेशन बना जो थुम्बा में थिरुंन्तपुरम के नजदीक स्थित था | कुछ समय बाद इसे डॉ . विक्रम साराभाई की याद में इसका नाम बदलकर डॉ. विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर रख दिया गया |
समय बित चूका था और इन्स्कोपार के स्थापना के ७ वर्षो बाद १५ अगस्त आझादी के दिन १९६९ में इन्स्कोपार ने इसरो का रूप ले लिया | इसे आप और हम अधिकारिक तौर पर इसरो की स्थापना भी कह सकते है. इसरो ने भारत पहला उपग्रह आर्यभट तैयार किया जिसे भारत के महान खगोलशास्त्री आर्यभट का नाम दिया गया | आर्यभट उपग्रह को १९ अप्रैल १९७५ को उस समय के सोविअत रशिया की मदत से प्रक्षेपित किया गया. पांच वर्षो के बाद इसरो ने अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करनेकी तकनीक हासिल कर ली . १८ जुलाई १९८० को इसरो ने रोहिणी उपग्रह slv-३ rocket के मदत से अंतरिक्ष में भेजा. उसके बाद इसरो ने दो rocket तैयार किये एक था polar satellite launch vehicle (PSLV) और दूसरा था geosynchronous satellite launch vehicle (GSLV)
१९९० की शुरुवात में इसरो ने PSLV विकसित किया , PSLV का पहला उड़ान २० सितम्बर १९९३ को हुवा जो alttitude control प्रॉब्लम की वजह से असफल रहा. लेकिन इस असफलता के बाद १५ अक्टूबर १९९४ को PSLV अपने दुसरे मिशन में सफल रहा. १९९९ के आते आते इसरो ने दुसरे देशो के उपग्रह और एक ही PSLV rocket पर एक से अधिक उपग्रह को प्रक्षेपित करना आरंभ कर दिया. लेकिन अभी-भी इसरो insat category जैसे उपग्रह को प्रक्षेपित करने के लिए नासा और ESA पर निर्भर था , इसीलिए इसरो ने GSLV rocket को अपनाया, १८ अप्रैल २००१ को GSLV का पहला उड़न हुवा दुर्भाग्य वश वह भी असफल रहा. लेकिन ८ मै २००३ को GSAT-२ उपग्रह को अंतरिक्ष में सफलापूर्वक स्थापित करनेमे GSLV कामयाब हुवा. २० सेप्टेम्बर २००४ को शिक्षा के लिए अर्पित EDUSAT इसरो ने प्रक्षेपित किया, वो भी GSLV के मदतसे.
२०११ और २०१३ के बिच इसरो ने खुद की navigation सिस्टम जैसी की गगन और नाविक तैयार किये. १५ फरवरी २०१७ में इसरो ने एक ही rocket की मदत से १०४ उपग्रह जिसमे १०१ विदेशी उपग्रह थे अंतरिक्ष में छोड़े जो एक वैश्विक कीर्तिमान है |
इसरो ने भारत के लिए विज्ञानं , तकनीकी , मौसम , शिक्षा, मेडिसिन के क्षेत्र में काम किया है. शुरुवाती समय में rocket के पार्ट साईकिल पर ले जानेवाला इसरो, उपग्रह बैलगाड़ी में ले जानेवाला इसरो आज एक विकसित अंतरिक्ष संगठन है और इतनी ढेर सारी उपलब्धियों के बाद इसरो की नजर अब है मंगलयान -२ , शुक्र ग्रह का मिशन , बुध ग्रह पर मिशन, सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य उपग्रह इन मिशन पर ……
आपको हमारी यह पेशकश कैसी लगी हमें जरुर लिख भेजिएगा .
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*the pictures used in this article have been taken from google.com & isro.org)
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